आर्डूइनों के काफी प्रकार के बोर्ड बाजार में
प्रचलित हैं। इनके नाम भी अलग-अलग रखे गए है। कुछ बोर्ड्स के माइक्रोकोंट्रोलर भी अलग-अलग
होते है। परंतु सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला माइक्रोकोंट्रोलर Atmega329P ही है।
आर्डूइनों के कुछ सबसे ज्यादा प्रचलित बोर्ड्स इस प्रकार से है।
आर्डूइनों
यूनो |
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आर्डूइनों
मेगा |
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आर्डूइनों
मिनी प्रो |
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आर्डूइनों
लिलीपैड |
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आर्डूइनों
बीटी |
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आर्डूइनों
नैनो |
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आर्डूइनों
यून |
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इन सबके आलवा भी अनेकों आर्डूइनों माइक्रोकोंट्रोलर
बोर्ड्स बाजार में उपलब्ध हैं । इन सब आर्डूइनों माइक्रोकोंट्रोलर बोर्ड्स का
डिजाइन और आकार एक दूसरे से भिन्न है। यह क्षमता में भी एक दूसरे से भिन्न होते है
। परंतु इनके प्रयोग और प्रोग्राम करने की विधि एक समान ही है । यदि आप किसी एक
बोर्ड को प्रोगाम करना सीख जाते है तब आपके लिए दूसरे बोर्ड्स को प्रयोग करना बहुत
ही सरल हो जाता है क्योंकि इनका प्रयोग भी लगभग एक समान ही है। इसको एक ही
प्रोग्राममिंग सॉफ्टवेर से प्रोग्राम किया
जा सकता है । प्रोग्राममिंग IDE सॉफ्टवेर बोर्ड को स्वत: ही detect
कर लेता है और उसी के अनुसार प्रोग्राममिंग
कर देता है।
एक माइक्रोकोंट्रोलर की प्रोग्राम करने के लिए तीन
मुख्य चीजों की जरूरत होती है ।
1 एक माइक्रोकोंट्रोलर
2 प्रोग्राममिंग डिवाइस
3 उपयुक्त प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेर एवं कंप्यूटर
इस प्रकार का प्रोग्राममिंग setup पहले बहुत प्रचलित थे।
इसमे एक प्रोग्राममिंग डिवाइस केवल एक प्रकार के माइक्रोकोंट्रोलर को ही प्रोग्राम
कर सकते थे । किसी अन्य प्रकार के माइक्रोकोंट्रोलर के लिए दूसरा प्रोग्राममिंग
डिवाइस लगता था । इसी कारण से यह कम पसंद किए जाते थे ।
चित्र॰1
दूसरा यह प्रोग्राममिंग का यह तरीका महंगा भी होता
था । क्योकि इसमे अलग-अलग प्रोग्राममिंग डिवाइस खरीदना पड़ता था । इसके साथ ही अलग
प्रोग्राममिंग डिवाइस की सेटिंग्स और प्रोग्रामिंग विधि भी एक दूसरे से भिन्न होती
थी । जोकि काम को और जटिल बना देती थी । प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेर में भी अनेकों
सेटिंग्स करनी पड़ती है जो याद रखनी मुश्किल होती है। एक गलत सेटिंग
माइक्रोकंट्रोलर को खराब कर देती थी । इसी कारण से यह विधि ज्यादा रोचक और पसंद
नहीं की जाती थी । साथ ही माइक्रोकंट्रोलर को अपने running
board से निकाल कर प्रोग्रामिंग बोर्ड
में लगाना पड़ता था । यानि बार बार डिवाइस को खोलने की समस्या रहती थी । यदि चित्र
न॰1 और 2 को देखने से पता चलता है की दोनों प्रकार के प्रोग्रामिंग वातावरण (environment) में
एक चीज़ भिन्न है, वह है प्रोग्रामिंग हार्डवेयर । आर्डूइनों बोर्ड्स में यह
हार्डवेयर inbuilt होता है ।
चित्र ॰2
वही दूसरी विधि में प्रोग्रामिंग हार्डवेयर कम होने
के कारण यह विधि सस्ती हो गयी। साथ ही माइक्रोकंट्रोलर को अपने running बोर्ड
से निकले की जरूरत नहीं रह गयी । आप यदि चाहे तो माइक्रोकंट्रोलर को अपने running board में
ही प्रोग्राम कर सकते है । आर्डूईनो माइक्रोकंट्रोलर प्रोग्रामिंग पूरी होते ही
स्वत: ही रीसेट होकर अपने Running Mode में आ
जाता है और प्रोग्राम किए गए निर्देशों के अनुसार काम करना शुरू हो जाता है ।अपने
इसी गुण के कारण माइक्रोकंट्रोलर को निकालने की जरूरत नहीं रहती है । हम आगे
आर्डूईनो IDE के बारे में जानेगें ।
आज का प्रशन :-
आर्डूइनों बोर्ड उनो कितने वोल्ट्स पर काम करता है ?
What is the input voltage for Arduino Uno Microcontroller Board ?
अपने उत्तर हमें coments में बताए.।
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Kindly Answer in Comments Ssection .
What is the application of arduino
ReplyDeleteArduino can be used as a prime controller of a electronic circuit or a whole device. for example by using arduino we can make a colculator, it will handles the inputs from keys , calculate it and finally give answer to a screen.
DeleteVery nice I proud of you my lovely friend.
ReplyDeleteThanks Dear
Delete6-20v limit but recommend 7-12v
ReplyDeleteCorrect
DeleteNice read
ReplyDeleteThanks a lot for Appreciations
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